________________ कहा गया हैं कि 'एक ही दिन में इतने असत् विचार-वाणीवर्ताव चलते हैं कि जिनसे लगे हुए पापो का ढेर बड़े मेरु-पर्वत जितने सोने का दान करने से भी नहीं छूटता है' / जब कि षड् आवश्यकमय प्रतिक्रमण के सर्वज्ञकथित अनुष्ठान में यह ताकात है कि दिन व रात्रि भर के कइ पापो का ढेर आत्मा पर से हटा दे / ' अलबत्ता बड़े बड़े पापो का प्रतिक्रमण उपरान्त गुरु के आगे अलग आलोचन करके उनके तप आदि प्रायश्चित्त का ग्रहण-वहन करना जरुरी है, फिर भी छोटे छोटे पापो की सीमा नहीं है / अनुभव है कि मन एक मिनिट में तो कहीं के कहीं की असत् विविधविचारधारा चलाता है / इन में प्रत्येक विचारों का नाप एवं तज्जनित पापकर्मबंध का नाप हमारी कल्पना की बहार का विषय है / लेकिन शास्त्रोक्त विविध विधि-विधानयुक्त 'प्रतिक्रमण' अनुष्ठान उन अगणित पापो के ढेर का नाश करने में सक्षम है, समर्थ है / __ 'प्रतिक्रमण' यह षड्आवश्यकमय अनुष्ठान है / वे षड्आवश्यक ये है, :- (1) सामायिक, (2) चतुर्विंशति स्तव, (3) वंदन (4) प्रतिक्रमण (5) कायोत्सर्ग, व (6) प्रत्याख्यान इनका बहुत संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है, - (1) सामायिक है दो घडी (48 मिनिट) के लिए हिंसादि सावद्य (सपाप) व्यापारों का प्रतिज्ञाबद्ध त्याग (यानी विरति) का अनुष्ठान / 29880