________________ दूसरा विचार यह :- दूसरे के साथ बात हुइ, इस में प्रस्तुत देव या गुरु का अनादर हुआ / यह आशातना है / साधना करनी है तो आशातना का त्याग कर करनी चाहिए / इस प्रकार पांचवें तप 'ध्यान' का वर्णन पूरा हुआ / (34) महान योग : प्रतिक्रमण साधु व श्रावक के लिए प्रभात एवं सायं उभयकाल 'प्रतिक्रमण एक अवश्य करणीय आचार है / यह खास तोर पर रात्रि एवं दिन में विचार-वाणी-वर्ताव से किये गए दुष्कृत्यों से लगे पापो को निवारने एवं संस्कारो को मिटाने कि अद्भूत योग क्रिया है / / प्रतिक्रमण का अर्थ है :- 'प्रति' = पाप से, 'क्रमण' = पीछे हटना, यानी पापो का भारी संताप रख गुरु के आगे मिथ्या दुष्कृत मांगना / जैन धर्म में प्रतिक्रमण योग विश्व में एक अनूखा महायोग हैं | क्यों कि इससे दिनभर में एवं रात्रिभर में जो असत् मनो - वाक् - काय - प्रवृत्तियों से आत्मा पर अनंत कर्माणुओ चिपके हुए हैं उनका विसर्जन होता है / अन्यथा प्रतिक्रमण योग यदि न हो तो पहले तो वे स्थूल-सूक्ष्म असंख्य पाप-प्रवृत्तिओ का प्रत्येक का गुरु के समक्ष यथार्थ रूप में आलोचन (प्रकाशन) व प्रायश्चित्तकरण ही कैसे संभवित 0 2978