________________ रास्ते के वृक्षो का नमन, आकाश में सिंहासन, छत्रो का चलना, एवं पंछियों की प्रदक्षिणा / समवसरण पर प्रभु को अष्ट प्रातिहार्य, प्रभु की रूप-वचनातिशययुक्त देशना, समवसरण में परस्पर विरोध युक्त प्राणियो का प्रेम से साथ साथ बैठना, - जैसे कि शेर और हिरन, बिल्ली और चुहा, मयूर व साँप / प्रभु के उपदेश से कइ सम्यक्त्व, कइ देशविरति तो कइ चारित्र ले रहे हैं / यह सब दिखाइ पडे / (iii) रुपातीत ध्यान :- इसमें सिद्धशिला पर प्रभु की मोक्ष की अरुपी अवस्था का ध्यान करना है, जैसे कि-अनंतज्ञान-सुखमय, निरंजन, निराकार आदि अवस्थाएँ सोचनी है / दूसरे प्रकार का पदस्थ ध्यान इस रीति से होता है कि नवकार के अक्षरों पर मन लगाया जाए / जैसे कि हृदय को अष्ट पंखुड़ियों युक्त कमल जैसा धार कर मध्य कर्णिका में लिखित 'नमो अरिहंताणं' अक्षर पर मन को केन्द्रित किया जाए; व आठ पंखुड़ियों में लिखित नवकार के बाकी के आठ पद पर मन लगाया जाए / इस में चार दिशा में चार पद और चार विदिशाओ में अंतिम चार पद / इस प्रकार नवकार के पद (अक्षरों) पर ध्यान / यह भी पदस्थ ध्यान ध्यान के अन्य भी कइ प्रकार है: (10) समवसरण ध्यानः- दृष्टि समक्ष चोकट समवसरण में तीन किल्ले की बरह रेखा व प्रत्येक रेखा में मध्य में द्वार तोरण और 295