________________ है / बाद 2 - 3 - 4 गाथा में दर्शित नाम के अनुसार क्रमशः भगवान के चरण पर दृष्टि केन्द्रित की जाए तो वह भी ध्यान रूप होता है / फिर 5 - 6 गाथा में अनंत भगवान के चक्षु या चरण पर स्थिर दृष्टि व अंतिम गाथा में सिद्धशिला पर दृष्टि लगाने से ध्यान रूपता होती है / ऐसे क्रिया के प्रत्येक सूत्र के चित्र में भी दृष्टि स्थिर हो सकती है / अलबत्ता यहाँ धर्मक्रिया ध्यान रूप बनती है, अतः "ज्ञान ध्यान ___ में उजमाळ" का मतलब 'ज्ञान-क्रिया में उजमाळ', इस से क्रिया ध्यानरुप बनती है, फिर भी क्रिया-आचार-पालन के बाद अवकाश के समय में पिंडस्थ, पदस्थ और रूपातीत ध्यान करना लाभप्रद है / इस से शुभ में मन की स्थिरता का अच्छा अभ्यास करना मिलता है / जैसे कि (i) पिंडस्थ ध्यानः- अरिहंत भगवान की जन्म-राज्य-श्रमणवस्था, इस प्रत्येक में अवान्तर विविध अवस्था दृष्टि समक्ष लाकर मन को उसमें स्थिर किया जाए / पिंड = भगवान के देह पर ध्यान / जैसे कि, भगवान के मेरु शिखर पर जन्माभिषेक का ध्यान, राज्यावस्था का ध्यान, भगवान की श्रमण अवस्था (त्याग-तप-परीषह-उपसर्ग सहनादि) का ध्यान / यह सब पिंडस्थ ध्यान है / ___(ii) पदस्थ ध्यानः- तीर्थंकर पद की अवस्था पर मन स्थिर करना / इस में भगवान का विहार, उस में 9 सुवर्ण कमल पर पदन्यास, 2 2948