________________ समस्त आचार-अनुष्ठान का तो पहले ही अमल करने का हैं / उनमें ध्यान समाविष्ट ही है / अकेले ध्यान का अवकाश उनके आचरण के पश्चात् हैं / इस ध्यान के प्राथमिक अभ्यास के लिए सर्वप्रथम एकाग्रता सीखने के निमित्त अनेक प्रकार के अभ्यास करने चाहिए / जैसे कि - (1) ध्यान में प्रभु के एक एक प्रातिहार्य का क्रमशः बढ़ते हुए देखते रहना / जैसे कि, पहले सुवर्णवर्णी काया के प्रभु को रत्न सिंहासन पर बिराजमान देखें बाद में वहां चंवर प्रगट हुएँ / बाद में मुख के पीछे भामंडल प्रगट हुआ देखें / बाद में मस्तक पर तीन छत्र प्रकट हुएँ देखें / ऐसे चार प्रातिहार्ययुक्त प्रभु को देखते हुए बाद में सिर पर विशाल अशोकवृक्ष देखना / वहां उपर देवदुंदुभि बजती है ! नीचे प्रभु की वाणी में दिव्यध्वनि (बंसरी) सूर पूरती है / चारों ओर उपर से पुष्पवृष्टि बरसती है, यह क्रमशः देखते चलना / (2) बाद में अष्ट प्रातिहार्ययुत अरिहंत प्रभु को मन के सन्मुख स्थापित कर, हृदय कमल की कर्णिका पर बिराजमान करके 'ॐ ही अहँ नमः' इस 'मृत्युंजय जप' का जाप करते रहना / इस बात का ध्यान रहना चाहिए कि 'बीच में लेशमात्र भी दूसरे विचार भी आए बिना कितनी संख्या में अथवा कितने समय तक जाप अखंड चलता रहता है / ' वारंवार इस प्रकार के अभ्यास से अखंड जाप 2 2900