________________ ___(ii) छेद परीक्षा :- इसमें यह देखना कि क्या इसमें ऐसी चर्या, ऐसे आचार का प्रतिपादन है जो कि विधि-निषेध को लेशमात्र भी बाधक नहीं; किन्तु साधक है? जैसे कि 'जिनागम में कथन है कि समिति, गुप्ति आदि चर्या आचार का पालन कर्त्तव्य है' इसमें हिंसा बिलकुल नहीं हैं / यहां 'तप, ध्यान आदि' विधि के पालन में ही अनुकूलता है / ___(iii) ताप परीक्षाः- यह देखना कि क्या इसमें विधि-निषेध और जिनागम के आचार के अनुकूल तत्त्व व्यवस्था है? तो जैसे कि अनेकान्तवाद को शैली से आत्मादि द्रव्यो की नित्यानित्यता, उत्पादव्यय - ध्रौव्य आदि पर्यायो का भेदाभेद भाव आदि तत्त्व-व्यवस्था वर्णित की गई है, जो विधि-निषेध तथा आचार को संगत होने योग्य है, ऐसे चिंतन से विशिष्ट श्रद्धा स्वरूप सम्यग्-दर्शन की अति दृढ वृद्धि होती है / ध्यान के विषय में कुछ आदर्श : जैन धर्म में ध्यान का इतना अधिक महत्त्व है कि प्रत्येक शुभयोग में ध्यान अनुस्यूत (बुना हुआ) होना चाहिए / इसलिए प्रत्येक साधना क्रिया-प्रवृत्ति प्रणिधानपूर्वक करने का विधान है / ___'प्रणिधान' का अर्थ है कि 'विशुद्ध भावना के बल के साथ प्रत्येक क्रिया में एवं उच्चरित सूत्र के अर्थ में समर्पित मन / ' ऐसा समर्पित मन ध्यान ही है / अतः साधु अथवा श्रावक को अपने अपने उचित 2 28989