________________ कर्मबन्ध, परलोक, मोक्ष, धर्म आदि अतिन्द्रीय होने के कारण उन्हे स्वतः देखना, जानना, समझना अतीव कठिन है, तदपि इन्हे आप्तपुरूष के वचन द्वारा जान सकते है / परम आप्तपुरूष 'वीतराग सर्वज्ञ श्री तीर्थंकर भगवान' के वचनो ने इन पर कितना सुन्दर प्रकाश डाला है | सर्वज्ञ भगवान को मिथ्या भाषण करने का कोई कारण नहीं है / अतः उनके समस्त वचन सर्वे सर्वा सत्य हैं / उनके कथन यथास्थित ही है / ' 'अहो! कैसा अनन्य उनका उपकार! कैसी कैसी अनन्त कल्याणसाधक, विद्वज्जन-मान्य और सुरासुर-पूजित उनकी आज्ञा है' इस प्रकार के चिन्तानुचिन्तन से सकल सत् प्रवृत्ति की प्राणभूत श्रद्धा का प्रवाह अखंड प्रवाहित होता है / 10. हेतुविचय :- जहाँ आगम के हेतु अन्य पदार्थ पर विवाद खड़ा हो, वहां कौन से तर्क का अनुसरण करने द्वारा स्याद्वादनिरुपक आगम का आश्रय लेना है, और वह भी कष-छेद-ताप की कौन सी परीक्षा से लाभप्रद होगा, ऐसी विचारणा करनी / किसी भी शास्त्र की सत्यता ढूंढने के लिए स्वर्ण की परीक्षा के सदृश्य इसकी परीक्षा करनी चाहिए / ____(i) 'कष = कसौटी / परीक्षा, इसमें यह देखना कि क्या इसमें योग्य विधि - निषेध है? जैसे कि जिनागम में कथन है कि 'तप, स्वाध्याय, ध्यान करना हिंसादि पाप न करना / ' A 28888