________________ साधु-जीवन में 'इच्छाकारादि' दश प्रकार की सामाचारी व अन्य अनेकविध आचार अष्टप्रवचनमाता (5 समिति, 3 गुप्ति), संवर निर्जरा, तथा पंचाचार का अवश्य पालन करना होता है / 10. सामाचारी :- (1) इच्छाकार :- साधु को अपना काम मुख्यतःस्वयं करना होता है / यदि कारणवश दुसरे साधु से कराना पडे तो 'आप यह कार्य करेंगे?' ऐसी उसकी इच्छा पूछकर कराना / (2) मिथ्याकार :- भूल ही जाए तो तत्काल 'मिच्छामि दुक्कडं' (मेरा दुष्कृत मिथ्या हो / ) कहना (3) तथाकार :- गुरु कुछ आदेश करे तो उसी समय 'तहत्ति' (वैसा हो) कहना / (4) आवश्यकी :- बाहर जाने से पहले, आवश्यक लघुशंकाबड़ीशंका को निपटाकर 'आवस्सही' (मैं ने आवश्यक निपटाया) कहकर निकलना / (5) नैषेधिकी :- मुकाम में प्रवेश करते हुए 'निस्सीहि' ('बाहर की प्रवृत्ति का त्याग') कहना / (6) पृच्छना :- कोई भी कार्य करने से पहले गुरु से पूछना / (7) प्रतिपृच्छना :- कार्य के लिए बाहर जाते समय गुरु से पुनः पूछना / 2 2800