________________ (8) छंदना :- आहार वापरने से पहले मुनियों से छंद अर्थात् इच्छा पूछना की 'क्या इसमें से लाभ देंगे?' (9) निमन्त्रणा :- भिक्षा लेने जाने से पूर्व मुनियों को निमन्त्रण करना 'आपके लिए में क्या लाऊं?' (10) उपसंपदा :- तप, विनय, श्रुत आदि की तालीम के लिए उसके योग्य अन्य आचार्य की निश्रा सांनिध्य का स्वीकार करना / अन्य भी आवश्यक स्वाध्याय आदि आचारों हैं / संवर, '8' प्रवचनमाता, पंचाचार व 12 निर्जरा मार्ग की भी आराधना करनी होती (33) ध्यान ध्यान का कुछ वर्णन 'निर्जरा' तत्त्व में पांचवें ध्यान तप में आया है / इसका सारांश यह है,- 'ध्यान' का अर्थ है एक विषय पर एकाग्र चित्त यानी चिन्तन / उसके दो प्रकार हैं :- शुभ ध्यान, अशुभ ध्यान / अशुभ ध्यान तप नहीं है, कर्म का नाशक नहीं है, प्रत्युत कर्म का आश्रव है / ध्यान यह तप है, यह अपूर्व कर्मनाश करता है / ऐसे शुभ ध्यान से कर्म बहुत वेग से क्षीण होते हैं | अशुभ ध्यान के दो प्रकार हैं, (1) आर्तध्यान (2) रौद्रध्यान / इन दोनों में हरेक के चार-चार प्रकार है / इन्हे चार ‘पाए' भी कहे 2 2810