________________ में स्वाध्याय कर गुरुवंदन-पच्चक्खाण करके रात्रि को लघुशंकादि के लिए जाना पड़े उसके लिए निर्जीव स्थान पहले से देख लेते है / तथा रात के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करके संथारा पोरिसी पढ़कर सो जाते हैं / (1) साधु जीवन में सब कुछ गुरु को पूछकर ही करना होता है / (2) रूग्ण-बीमार मुनि की सेवा का विशेष ध्यान रखना होता है / इसके अतिरिक्त (3) आचार्यादि की सेवा और गुरु आदि की विनय-भक्ति करना / (4) छोटी-मोटी हरेक स्खलना का, गुरु के समक्ष बालभाव से वह प्रगट कर, प्रायश्चित्त लेना होता है / (5) शक्यता के अनुसार प्रतिदिन एकासन एवं विगईयों का त्याग करना / (6) पर्वतिथि में विशेष तप / (7) वर्ष में तीन या दो बार केशों का हाथ से लोच करना / (8) शेषकाल में ग्रामानुग्राम पाद-विहार करना / (9) सूत्र व अर्थ का बहुत बहुत पारायण आदि अवश्य करने का होता है (10) परिग्रह और स्त्रीयों से सर्वथा अलिप्त रहना, किसी भी प्रकार का परिचय, बातचीत, निकटवास, आदि बिलकुल न किया जाए / इसी प्रकार (11) स्त्री-भोजन-देश और राज्य-संबन्धी एवं कुथली की बाते न करे / संक्षेप; में मन को आन्तर भाव से बाह्यभाव की और ले जाने वाली कोई भी वाणी, विचार अथवा वर्तावव्यवहार नहीं करना है / इसीलिए गृहस्थ-पुरूषों का भी विशेष संपर्क नहीं रखना चाहिए /