________________ साधु की दिनचर्या : रात्रि के अंतिम प्रहर के शुरू होते ही वह निद्रा का त्याग कर पंचपरमेष्ठि-स्मरण, आत्म- निरीक्षण तथा गुरू चरणो में नमस्कार करते हैं / तत् पश्चात् इरियावहियं कर के कुस्वप्न-शुद्धि का कायोत्सर्ग करते हैं / बाद में चैत्यवंदन करने पूर्वक स्वाध्याय, ध्यान करते हैं / प्रहर के अन्त में प्रतिक्रमण करके वस्त्र-रजोहरणादि की प्रतिलेखना करते हैं, तब तक में सूर्योदय हो जाता है / / सूर्योदय से सूत्र-पोरिसी शुरू होती है / सूत्र-पोरिसी में सूत्राध्ययन करके 6 घडी दिन चढने पर वह पात्र-प्रतिलेखना करते हैं / तदनन्तर मंदिरजी में दर्शन चैत्यवंदन करके वापिस आकर अर्थपोरिसी में सूत्रार्थ का अध्ययन करते हैं / गाँव में भिक्षा के समय गोचरी (जैसे गाय किसी को पीडा न देती हुई चरती है, इस प्रकार की 42 दोष मुक्त भिक्षा) लेने जाते हैं / इसमें 42 दोषो का त्याग करते हुए अनेक बदलते घरो से भिक्षा लाकर गुरू को दिखाते हैं, और वहाँ ली हुई गोचरी की विगत बताते हैं / फिर पच्चक्खाण पारकर सज्झाय ध्यान करके आचार्य, उपाध्याय, बाल, ग्लान, तपस्वी, अतिथि आदि की भक्ति करते हैं और स्वयं राग-द्वेषादि 5 दोष को टालकर आहार इस्तेमाल करते हैं / तत्पश्चात् गाँव के बाहर स्थंडिल (निर्जीव एकांत) भूमि में जाकर शौच से निवृत्त होते हैं व तीसरे प्रहर के अंत में वस्त्र-पात्रादि की प्रतिलेखना करते हैं / चौथे प्रहर SA 27860