________________ हुआ, वेश्या के समान निर्वाह करे, और गृहवास को निष्फल वेठविटंबना रूप समझता हुआ इसे 'आज छोडूं, कल छोडूं' ऐसी भावना में रमता रहे / (32) साधु-धर्म (साध्वाचार) प्रवेशक्रम-सच्ची धर्म साधना करने में मूल उपाय है, संसार से वैराग्य अर्थात् संसार के जन्म-मरण इष्ट-वियोग, अनिष्ट-संयोग, रोगशोक, आधि-व्याधि-उपाधि, पाप-सेवन व कर्मो की भयंकर गुलामी के कारण संसार से ऊब जाना यह वैराग्य है / इस संसार से छुटकर मोक्ष प्राप्ति की तमन्ना होती हैं / इस प्रकार ऊब जाना यानी वैराग्य पहले पाना होता है / __ वैराग्य होने पर भी अभी मोह की परवशता तथा शक्ति की न्यूनता के कारण गृहस्थवास में रहना पड़ता है, फिर भी धर्मसाधना का पालन चलता है / परन्तु दैनिक जीवन में जो गृहवास के कारण असंख्य षट्काय-जीवो का संहार तथा 18 पापस्थानको का सेवन करता पडता है / वह उसे अत्यन्त खटकता है / अतः वह वैराग्यवृद्धि और धर्म के वीर्योल्लास की वृद्धि के प्रयत्न में रहता है / वैराग्य पर्याप्त मात्रा में बढ़ने पर वह गृहवास, कुटुंब-परिवार, धनसम्पत्ति और आरंभ-समारंभ के जीवन से अत्यन्त ऊबकर उसका त्याग कर देता है और योग्य सद्गुरु के चरणों में अपना जीवन समर्पित 2768