________________ है, ऐसा विचार कर इसे पाप-सेवन की पराधीनता की बेडीरुप होने से कारागार-निवास जैसा समझना / साधु-दीक्षा के लिए इसे छोडने का भरचक प्रयत्न करना / 8. सम्यक्त्व को चिंतामणि रत्न से भी अधिक मूल्यवान ओर अति दुर्लभ समझकर सतत शुभभावना ओर शुभ कृत्यो से एवं शासन की सेवा व प्रभावना द्वारा सम्यक्त्व को स्थिर रखना, इसे निर्मल करते रहना, इसके सामने महान वैभव भी तुच्छ जानना ) 9. लोकसंज्ञा अर्थात् गतानुगतिक लोक की प्रवृत्ति और मानाकांक्षा की और आकृष्ट न होकर सूक्ष्म बुद्धि से विचार करना / 10. 'जिनागम के बिना लोक अनाथ है, क्योंकि जिनागम को छोडकर कोई परलोकहित का सच्चा मार्ग बताने वाला नहीं है' - ऐसी दृढ श्रद्धा से जीवन में जिनाज्ञा को प्रधान करनी अर्थात् जिनागम को ही सन्मुख (ध्यान में) रखकर सब कार्य करना / 11. दानादि धर्म को आत्मा की अपनी परलोकानुयायी संपत्ति समझकर, शक्ति को छिपाये बिना, अच्छी प्रकार दानादिआचरण में आगे बढना / ___12. दुर्लभ तथा चिंतामणि रत्न के समान अमूल्य एकान्त हितकारी निष्पाप धर्मक्रिया का यहाँ स्वर्णिम अवसर मिला है, इसका सुरीत्या उपयोग करते हुए यदि इस में अज्ञानी कभी हंसी-मजाक 20 27430