________________ 8 समकित, 9 लोकसंज्ञा, 10 जिनागम 11 दानादि, 12 धर्मक्रिया, 13 अरक्तद्विष्ट (मध्यस्थ) 14 अनागृही, 15 असंबद्ध, 16 परार्थभोगी, 17 वेश्यावत् गृहवास, इन 17 विषय पर विचारणा करनी / 1. स्त्री को पापो व अनर्थ की प्रेरक चलचित्त और नरक की दूती समझकर हितार्थी उसके वश में न होकर, उसमें आसक्त न हो / 2. धन यह अनर्थ क्लेश और कलह की खान है, ऐसा समझकर इसका लोभ न करना / 3. सब इन्द्रियां आत्मा की भाव शत्रु है, जीव को दुर्गति में घसीट कर ले जाने वाली है / ऐसा समझकर उन पर अंकुश रखना / 4. संसार पाप-प्रेरक है, दुःख रूप है, दुःखदायी है, व दुःखानुबंधी (दुःख की परंपरा को देनेवाला) है / यह विचार रखकर इससे मुक्त होने के लिए आतुरता व शीघ्रता रखनी / 5. शब्द, रुप, रस, गंध, स्पर्श ये सब विषयो विष (जहर) रुप है, अतः इनसे राग-द्वेष न करना! विषयाँ सत् चैतन्य के मारक होने से विषरुप है / 6. सांसारिक कार्य आरंभ-समारंभमय जीवघात से पूर्ण है, ऐसा सोचकर बहुत कम आरंभो से चलाना / 7. घरवास षट्कायजीव-संहारमय व अठारह पापस्थानको से पूर्ण 0 27380