________________ के तथा समभाव के लाभ के लिए सांसारिक समस्त पाप-प्रवृत्तियों का त्याग कर, विधिपूर्वक प्रतिज्ञा लेकर, कटासन पर बैठकर दो घड़ी के लिए ज्ञान-ध्यान करना; यह सामायिक कहलाता है / यह प्रतिज्ञा लेनी चाहिए कि प्रतिदिन या प्रतिमास या प्रतिवर्ष इतने सामायिक करुंगा / प्रश्न- ऐसी प्रतिज्ञा से विशेष लाभ क्या है? बिना प्रतिज्ञा भी सामायिक किया जाय तो उसका लाभ तो होगा ही / उत्तर- ऐसे ही बिना प्रतिज्ञा सामायिक करने पर तभी लाभ मिलता है जब व्यक्ति सामायिक मैं बैठता है / यदि मास, वर्ष या जीवन पर्यंत की प्रतिज्ञा लेकर सामायिक किया जाये तो प्रतिज्ञा का अखंड सतत लाभ मिलता है जो कि अतिरिक्त समझना चाहिए / 'जावमणे होइ नियमसंजुत्तो; छिन्नइ असुहं कम्म' @@=@@ जीव जहां तक मन में नियम के उपयोगवाला होता है वहाँ तक अशुभ कर्म नाश होता रहता है / सामायिक में मन-वचन-काया को पापमय प्रवृत्ति, विकथा, सामायिक का विस्मरण आदि न हो, यह सावधानी रखनी चाहिए / 10. शिक्षाव्रत : देशावकाशिक : इसमें मुख्यतः अमुक स्थान का निश्चय कर उससे बाहर नहीं जाना है और बाहर के साथ कोइ सबंध नही व व्यवहार भी नहीं 2 267