________________ करना एवं धर्म ध्यान में रहना है / इस बात की कुछ समय तक प्रतिज्ञा की जाती है जैसे कि, 0 / घंटा, 0 ।।-घंटा, या सूर्योदय तक, सूर्यास्त तक, या कोई मिलने आए वहाँ तक यह व्रत / इस व्रत से जगतभर के पापो से बच जाते हैं / इसमें दूसरे व्रतो को संक्षिप्त किया जाता है / चालू प्रणालिका में यह प्रतिज्ञा की जाती है कि 'कम से कम एकासने का तप रखकर दिन भर में दो प्रतिक्रमण तथा आठ सामायिक करने का देशावकाशिक व्रत वर्ष में इतनी संख्या में करुंगा / ' हां, इस व्रत के मर्म के पालनार्थ इस सामायिक से बचे हुए समय में सांसारिक प्रवृत्तियों में रत न होकर ज्ञान, ध्यानादि धर्मप्रवृत्ति में ही दिन व्यतीत करना हितकर है / इस व्रत में यह सावधानी भी रखनी होती है कि नियत की गयी मर्यादा के बाहर से न तो किसी को बुलाना है और न भेजना 11. शिक्षाव्रत : पौषध : 'पौषध' का अर्थ धर्म का पोषण करनेवाला है / इसमें दिन, रात या दिन-रात के लिए पूर्ण सामायिक के साथ आहार, शरीरसत्कार, व्यापार के त्याग तथा बह्मचर्य की प्रतिज्ञा लेकर आवश्यक क्रियाओं और ज्ञान-ध्यान में रत रहना / इससे आन्तरिक धर्म का पोषण होता है, अतः इसे पौषध कहते है / इसमें समिति गुप्ति का पालन करना होता है / 2680