________________ सावधान रहते हुए अर्थात् भूल होने पर दण्ड भरने का रखकर त्याग करना और चौथी बात का प्रतिज्ञापूर्वक त्याग करना / जैसे कि - i. दुर्ध्यान में :- 1. इष्ट वस्तु प्राप्त हुई अथवा प्राप्त होगी, का चिन्तन अथवा यह टिको या न जाओ इस प्रकार चिंतन / ii. यह नष्ट हो गयी, अथवा स्थिर नहीं रही, या अनिष्ट आ गयी वे आये या न आये इस पर अधिक उद्वेग का चिन्तन / _ii. रोग की अवस्था में हाय वोय की अथवा दुःख की व्यथा के कारण रोग-नाश, वैद्य, औषधि, अनुपानादि का चिन्तन / _iv. पौद्गलिक पदार्थो की अत्यधिक आशंसा (अभिलाषा) की यह आर्तध्यान हुआ / इसी प्रकार हिंसा, झूठ, चोरी व संरक्षण का घोर ध्यान यह रौद्रध्यान है / ऐसे दुर्ध्यान से बचना चाहिए / यह नहीं करना चाहिए / जीवघातक शस्त्र, ओखली, दस्ता, मूसल, लकड़ी, साबुन, अग्नि मिट्टी का तेल आदि पाप के साधन तथा विषय-साधन दूसरों को नहीं देने चाहिए / ___ii. पापोपदेश :- अर्थात् किसी को क्लेश, कलह, पाप के धंधे, हिंसक कार्य, हिंसा, झूठ, चोरी आदि की राय नहीं देनी / इसी SA 2650