________________ में अपनी शक्ति अनुसार आचरण-योग्य परिमाण निश्चित कर शेष के त्याग की प्रतिज्ञा की जाती है / अन्नपान में श्रावक यथासंभव सचित (सजीव) का त्याग करे, जैसे कि कच्चा पानी, कच्चा साग, सचित फल, अथवा उसी समय निकाला गया रस, कच्चा नमक आदि सचित कहे जाते हैं / प्रश्न - सचित्त के त्याग में सचित को अचित करते हुए अग्निकायादि के अनेक जीव मरते हैं / इसकी अपेक्षा तो सचित्त को खा ले तो क्या हानि है? इससे अग्निकायादि जीवो की हिंसा नही करनी पड़ेगी / उत्तरः यह ठीक है कि सचित्त का अचित्त करते हुए जीवो का नाश होता है, किन्तु सचित्त का उपयोग करते हुए सीधे अपने मुख से चबाकर निगलना हो यह अधिक निर्दयता है, अधिक क्रूर परिणाम है / धर्म; आत्मा के कोमल परिणाम में निहित है / अचित्त की अपेक्षा सचित्त अधिक विकारी है / अतः सचित्त का त्याग आवश्यक है | प्रश्न- क्या-क्या अचित्त है? उत्तर- उबला हुआ पानी, ठीक तरह पकाया गया साग काटने और बीज पृथक करने के दो घड़ी बाद का पका फल अथवा रस (पके हुए केले में बीज नहीं होता अतः वह बिना काटे भी अचित्त है), लाल छांट रहित सफेद सिंधव, भट्ठी में पकाया गया नमक, 12 26388