________________ उद्यान, सोना-चांदी, हीरा-मोती आदि आभूषण; बर्तनभांडा, फर्नीचर, पशु, दास-दासी इस तरह नव प्रकार के परिग्रह का परिमाण नियत करना कि इससे अधिक नहीं रखूगा' / अथवा इन सबकी कुल मूल्य या बाजारभाव की कीमत से रुपयों से अधिक मूल्य का परिग्रह नहीं रखूगा / इससे अधिक आ जाय तो तत्काल धर्म कार्यो मैं खर्च करुंगा" ऐसी प्रतिज्ञा / ऐसा करते हुए बढ़ती हुइ भयावह मंहगाई का विचार रखना चाहिए / व्रत के पालनार्थ परिग्रह के परिमाण का विस्मरण नहीं होना चाहिए / अधिक परिग्रह को स्त्री-पुत्रादि के नाम रखकर उस पर अपना शासन या नियन्त्रण न रखा जाए / प्रतिज्ञा की कल्पना में परिवर्तन न किया जाये इत्यादि / 6. गुणव्रत : दिशा परिमाण : ऊपर नीचे आधा या एक मील, और चारों दिशाओं में इतने मील की परिधि से, अथवा भारत के बाहर नहीं जाऊंगा ऐसी प्रतिज्ञा | इसका पालन करते हुए परिमाण को नहीं भूलना, एक दिशा में परिमाण कम करके दूसरी में आवश्यकतानुसार नही बढ़ाना-इत्यादि सावधानी रखनी चाहिए / 7. गुणव्रत : भोगोपभोग परिमाण : 'भोग' अर्थात् एक ही बार उपयोग में आने वाले अन्नपान, तांबूल विलेपन पुष्प आदि / 'उपभोग' अर्थात् बार-बार उपयोग में आने वाले घर, आभूषण, पलंग, कुर्सी, शय्या, वाहन, पशु आदि / सातवें व्रत 2 2628