________________ (30) देश विरति : बारह व्रत सम्यग् दर्शन की प्राप्ति की इससे उसके अन्तर्गत भव-निर्वेद के कारण संसार तथा आरंभ, परिग्रह, विषय आदि आत्मा को विष के समान प्रतीत होते हैं / अतः इस प्रतिदिन तीव्र इच्छा रहती है कि "कब पाप से भरे इस गृहवास को छोडकर निष्पाप साधुदीक्षा (चारित्र-प्रवज्या) ग्रहण करूं! और अणगार बनकर दर्शन-ज्ञान-चारित्र एवं तप का ही एकमात्र जीवन व्यतीत करूं!" इससे अलबत्ता संसार तत्काल न छोड़ा जा सके यह संभवित है, किन्तु उसका दिल कायम ऐसा बना रहना चाहिए / अब जब सर्वपाप-त्याग की सच्ची कामना है, तब फिर इस मार्ग की और अग्रसर करने वाले शक्य पाप-त्याग के मार्ग का अभ्यास करना चाहिए / इसके लिए 'देशविरति (आंशिक विरति) धर्म' का पालन कर्त्तव्य बन जाता है / इसमें सम्यक्त्वव्रत पूर्वक स्थूल रूप से हिंसादि पापो के त्याग की तथा सामायिकादि धर्म साधना की प्रतिज्ञा की जाती है / इस प्रकार देशविरति धर्म में ये 12 व्रत आते है:- 5 अणुव्रत + 3 गुणव्रत + 4 शिक्षाव्रत = 12 व्रत / 5 अणुव्रत :- स्थूल रूप से हिंसा, असत्यादि पापो का प्रतिज्ञाबद्ध त्याग / स्थूल अहिंसा, सत्य, नीति, सदाचार, अल्प परिग्रह / 22 2590