________________ परिणाम प्राप्त न हो तो प्राप्त हो जाता है; प्राप्त हो तो अधिकाधिक निर्मल हो जाता है / सम्यक्त्व की प्राप्ति तथा उसकी उत्तरोत्तर निर्मलता के लिए निम्नलिखित बातें भी आचरनी हैं / सम्यक्त्व की करनी : प्रतिदिन जिनदर्शन, जिनभक्ति, जिनपूजा, पूजा में अपने पूजनद्रव्यों का यथाशक्ति समर्पण, साधु-सेवा, जिनवाणी का नित्य श्रवण, नमस्कार महामन्त्र का रोजाना स्मरण, अरिहंत, सिद्ध, साधु जिनधर्म के त्रिकाल शरण की स्वीकृति, अपने दुष्कृत्यो की आत्मा-निन्दा, अरिहंत आदि के सुकृतो की अनुमोदना, तीर्थयात्रा, साधर्मिकभक्ति, साधर्मिक मिलने पर प्रणाम, साधर्मिक उद्धार, बीमार-साधर्मिक की सेवा, सात व्यसन (शिकार, जुआ, मांसाहार, शराब, चोरी, परस्त्रीगमन का सर्वथा त्याग, रात्रिभोजनत्याग इत्यादि व्रत-नियम, दयादानादि धर्म की प्रवृत्ति, सामायिकादि क्रिया, तीर्थंकर परमात्मादि महापुरुषो के चरित्र-ग्रन्थो और उपदेशमाला, धर्मसंग्रह, अध्यात्मकल्पद्रुम, उपमिति भवप्रपंचा कथा, आदि ग्रन्थो का श्रवण, वांचन, मनन, तीर्थयात्रा इत्यादि / R 2588