________________ रचना कर सकनेवाला / (iv) विद्यावान् :- जिसे प्रज्ञप्ति - आकाशगामिनी आदि विद्याएँ सिद्ध हैं / (v) नैमित्तिक :- भूत-भविष्य को जान सके वैसे निमित्तशास्त्र में निष्णात / (vi) वादी :- परमतखंडन-स्वमतस्थापनकारी वाद की लब्धि से युक्त / (vii) सिद्ध :- चमत्कारी पादलेप, अंजन, गुटिका आदि का ज्ञाता / (viii) तपस्वी :- विशिष्ट तपस्यावाला / 10. विनय :- सम्यक्त्व-संपन्न आत्मा को इन दश का विनय करना चाहिए / 1 से 5. पंच परमेष्ठी, 6. चैत्य, 7. श्रुत, 8. धर्म 9. प्रवचन 10. दर्शन (चैत्य-जिनमूर्ति, मन्दिर, श्रुत आगम, धर्म=क्षमादि यतिधर्म, प्रवचन जैनशासन-संघ, दर्शन=सम्यक्त्व / __यह विनय पांच प्रकार से किया जाता है (i) बहुमान पूर्वक विनयभक्ति (ii) वस्तु के अर्पण से पूजा (iii) गुण-प्रशंसा (iv) निंदा का त्याग व (v) आशातना का त्याग / इस प्रकार दशों के विनय के 50 प्रकार होते हैं / इन 67 प्रकार के व्यवहार के पालन से सम्यक्त्व का आत्मा TO 2570