________________ न बढ़ सकता है / सम्यक्त्व रूपी पृथ्वी के आधार पर ही धर्मजगत् खड़ा रहता है / जैसे शेरनी का दूध सोने के पात्र में ही टिक सकता है, वैसे व्रत, अनुष्ठान दानादि आंतरिक धर्म; सम्यग्दर्शन स्वरुप पात्र में ही रह सकते हैं / जैसे मणि, माणिक्य, मोती, ये भंडार में सुरक्षित रह सकते है, उसी प्रकार दानादि धर्म समकित की तिजोरी में ही सुरक्षित रह सकते हैं / इस प्रकार यह भावना करनी चाहिए कि 'व्रतधर्म के लिए सम्यक्त्व सर्वप्रथम आवश्यक कर्तव्य है / ' 6 स्थान :- आत्मा के विषय में ये छ: बाते षट्स्थान कहलाती है / (i) 'आत्मा है' (ii) 'आत्मा नित्य है / ' (iii) 'आत्मा कर्म की कर्ता है / ' (iv) आत्मा कर्मफल की भोक्ता है / (v) 'उसकी मोक्ष है / ' (vi) 'मोक्ष के उपाय हैं / ' इसे मानने वाला 'आस्तिक' और न मानने वाला 'नास्तिक' कहलाता है / ____(i) जगत् में इस प्रकार के स्वतन्त्र आत्मद्रव्य अनन्त हैं / इसीलिए इस आत्मद्रव्य और जड़द्रव्य के परस्पर सहकार से इस विश्व का सिलसिला (सर्जन-विसर्जन की परंपरा) चलता है / जीव ही जड़ अन्न का आहार करता है / तभी शरीर बनता है, टिकता हैं और बढ़ता है / शरीर में अवयव और इन्द्रियाँ हैं / अतः जीव ही इनके द्वारा गमनागमन करता है, देखता है, सुनता है, बोलता है,... आदि क्रिया करता है / इस प्रकार षट् स्थान में प्रथम स्थान 22540