________________ (जबरदस्ती हो), या (vi) जंगल आदि में आजीविका का जीवन-मरण का प्रश्न उपस्थित हो, उस समय मिथ्यादेव - गुरू - धर्म को हृदय के भाव के बिना वंदन करने का अपवाद / / संन्यासी आदि कुगुरू, महादेव आदि कुदेव, तथा मिथ्यात्वियो द्वारा अपने देव के रूप में ग्रहण की गयी जिन-प्रतिमा, इन तीनों को वंदननमन, आलाप-संलाप अथवा दान-प्रदान ये छ: बाते न करना / इस से सम्यक्त्व की जतना-रक्षा होती है / ( 'वन्दन' = हाथ जोडना, 'नमन' = स्तुति आदि से प्रणाम, 'आलाप' = बिना बुलाये सन्मान से बुलाना, 'संलाप' = बार बार वार्तालाप, 'दान' = पूज्य के रूप में सत्कार बहुमान से अन्नादि देना, 'प्रदान' = चन्दन, पुष्पादि पूजा सामग्री धरना, अथवा यात्रा, स्नान, विनय, वैयावच्च आदि करना / 6 भावना :- सम्यक्त्व को स्थिर रखने लिए उसे 'मूल-दारंपइट्ठाणं, आहारो भायणं निहि', ये छ: भावनाओं देनी चाहिए / जैसे कि सम्यक्त्व बारहव्रत रूपी श्रावकधर्म का मूल है, द्वार है, नींव है, आधार है, भाजन (पात्र) है, भंडार (तिजोरी) है / सम्यक्त्व स्वरुप मूल के बिना धर्म वृक्ष सूख जाता है / सम्यक्त्व रुपी द्वार के अभाव में दानादि स्वरुप धर्मनगर में प्रवेश संभव नहीं | सम्यक्त्व की अचल नींव के बिना व्रतादि धर्मरुप भवन न तो स्थिर टिक सकता है और 0 2538