________________ यह है कि आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व है / (ii) इन आत्मद्रव्यों को किसी ने बनाए नहीं, किंतु ये अनादि काल से विद्यमान है / जीव का यहां मरण होने पर भी इनका अस्तित्व बना क्योंकि 'मरण' का अर्थ है 'आत्मा का इस शरीर के साथ वियोग / ' ये अनादि अनंत है, सनातन है, नित्य है,-यह आत्मा का द्वितीय स्थान है / यह आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर में, एक गति से दूसरी गति में, एक कर्म के उदय से दूसरे कर्म के उदय पर, निराधार तथा पराधीन रुप में भ्रमण-संसरण करती है / इसलिए इस संसरण का नाम 'संसार' है / अनादि से संसार के सब जीव संसरण करते आये हैं / अतः वे नित्य हैं / ___(iii) आत्मा विविध वृत्तियों और प्रवृत्तियों से कर्म (पुण्य-पाप) का उपार्जन करती है / उसमें वृत्ति अथवा प्रवृत्ति से तुरंत अपने को कर्म चिपकते रहते ही हैं / अतः आत्मा कर्म की कर्ता है / / ____(iv) आत्मा कर्म की भोक्ता है / जैसे नौकरी करनेवालें को ही वेतन मिलता है, वैसे ही कर्म के कर्ता को ही अपने उपार्जित कर्म का फल भोगना पड़ता है, दूसरे को नहीं / इसी प्रकार जैसे अधिक भोजन करनेवाले व्यक्ति को ही पेट के दर्द का भोग करना पड़ता है, वैसे पाप-कर्म पैदा करने वालों को ही उनका फल भोगना पडता है / विविध शरीरों का निर्माण, अज्ञानदशा, रोग, यश, अपयश आदि इन्हीं कर्मो के परिणाम हैं / 32 2558