________________ (3) निर्वेद :- 'संसार दुःखों की खान है, वास्ते वह नरकागार रुप लगे / संसार पापों की पराधीनता से युक्त है, अतः कारागार यानी जेल के समान है' यह प्रतीत हो; और इसके प्रति उद्वेग का होना यह निर्वेद है / ___ (4) अनुकम्पा :- शक्ति अनुसार दुःखी के दुःख दूर करने की दया की जाए और शक्ति न हो वहां शेष जीवों के प्रति भी हृदय में आर्द्रता रखी जाए यह अनुकम्पा है / __ दुःखी दो प्रकार के हैं- 1. द्रव्य से दुःखी अर्थात् भूख, प्यास, रोग, अपमान, मारपीट, आदि से पीड़ित / 2. भाव से दुःखी अर्थात् पाप, दोष, मूल, अधर्म, कषाय आदि से पीड़ित / दोनों के प्रति दया का नाम 'अनुकम्पा' है / ___ (5) आस्तिक्य :- अर्थात् ऐसी अटल श्रद्धा कि 'तमेव सच्चं निस्सकं जं जिणेहिं पवेइयं' - "जिनेश्वर देवो ने जो कुछ कहा है वही सच्चा और शंकाविहीन है / ' हृदय पर जिन-वचन का पक्का रंग चढ़ा हो / इसी प्रकार जिनवचन में कथित साधु-धर्म के प्रति यानी निग्रंथ धर्म के लिए 'एसेव अढे, इढे, परमढे, सेसे सव्वं खलु अणढे अणिढे' = 'यही अर्थ हए, इष्ट है, शेष सब अनर्थ रुप है, अनिष्ट है', - इस प्रकार सर्वत्र हृदय में आग लगी हो / सम्यक्त्व के 67 व्यवहार - 22 2500