________________ है / उसी प्रकार वे सर्वज्ञता द्वारा तीनों काल के समस्त पदार्थो को प्रत्यक्ष देखते हैं / और विश्व का जैसा स्वरूप है वैसा ही कथन करते हैं / अतः इन्हीं तत्त्व पर संपूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिए / जीवअजीव आदि पहले ही बताए जा चुके हैं / इन में ज्ञेय-हेय-उपादेय तत्त्वों के प्रति उनके अनुरूप मन की वृत्ति-झुकाव-मोड रखना चाहिए | जैसे कि, आश्रव हेय है, अतः इसके प्रति ग्लानि, घृणा, अरुचि एवं भय का मानसिक मोड रखना चाहिए / यह सम्यग्दर्शनगुण निश्चय-दृष्टि से तो मिथ्यात्व और अनंतानुबंधी कर्म के क्षयोपशम से आत्मा में प्रगट होनेवाला एक शुद्ध परिणाम (अवस्था) है / किन्तु व्यवहार-दृष्टि से वह सद्दहणा, श्रद्धा, लिंग, लक्षण आदि स्वरुप है / ___ सम्यक्त्व के पांच लक्षण है- शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य / (1) शम :- अर्थात् प्रशम / दूसरे शब्दो में अनंतानुबंधी कषाय के उदय से होने वाले रागद्वेषादि के आवेश की शान्ति / (2) संवेग :- अर्थात् देवलोक के सुखों को भी दुःख-स्वरुप समझकर इनकी लालसा छोडकर एकमात्र मोक्ष के साधनभूत धर्म के लिए ही तीव्र अभिलाषा का होना / इस प्रकार सुदेव-सुगुरु-सुधर्म पर तीव्र अनुराग का होना, यह संवेग कहलाता है / SR2496