________________ सम्यग्दर्शन मोक्ष का अनिवार्य रूप से प्रथम उपाय है यह जैसे जैसे अधिक से अधिक निर्मल होता है, वैसे वैसे बाद के उपाय यानी देश-सर्व चारित्र आदि प्रबल होते जाते हैं / इस निर्मलता के लिए सम्यक्त्व के 67 व्यवहारो का पालन करना आवश्यक है / इन्हें सरलता से याद रखने के लिए यह पद उपयोगी है : "सद्द, शुलि, दूभूल, आजभाट्ठा, प्रभा वि" इस में प्रत्येक अक्षर एक एक विभाग का संकेत करता है / वह इस प्रकार है:- 4 सद्दहणा, 3 शुद्धि, 3 लिंग, 5 दूषण, 5 भूषण, 5 लक्षण, 6 आगार, 6 जयणा, 6 भावना, 6 स्थान (स्थळ), 8 प्रभावना, 10 विनय, - इस प्रकार सम्यक्त्व के 67 व्यवहार हैं / 'सद्द शुलि' .... का विवरणः 4 सद्दहणा - (i) परमार्थ संस्तव = जीव - अजीवादि तत्त्व (परमअर्थ) का परिचय, यानी हार्दिक श्रद्धावाला अभ्यास / (ii) परमार्थ के ज्ञाता साधुजनों की सेवा / (iii) व्यापन्नवर्जन = सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट कुगुरू का त्याग / (iv) मिथ्यादृष्टि कुगुरू की संगति का त्याग | 3 शुद्धि :- (i-ii) मन और वचन यही कहें - 'जिन शरण ही सार है, जिनभक्ति ही समर्थ है / ' ____(iii) शरीर जिन पर की श्रद्धा से लेशमात्र भी विचलित न हो, चाहे देवों का भी उपद्रव प्रस्तुत हो न? जगत् में जिनेश्वर देव, 302510