________________ जैनधर्मप्राप्ति अति दुर्लभ है / (12) 'अहो सर्वज्ञतीर्थंकर भगवान ने कितना उत्तम धर्म फरमाया है / ' मैत्री आदि 4 भावना - (1) मैत्री है समस्त जीव राशी पर स्नेह-वात्सल्य / भावना 'सबका भला हो सब के दुःख दुर्बुद्धि जाओ / ' (2) करुणा :- 'दूसरे का दुःख मैं मिटाऊं' ऐसी बुद्धि (3) प्रमोद :- दूसरे के सुख या गुण में इर्ष्या नहीं किन्तु हर्ष / (4) चौथी उपेक्षा भावना :- पर दोष के सामने दृष्टि ही नहीं डालनी / उसका विचार ही नहीं करना / उसकी उपेक्षा करनी / 4 ज्ञानादि भावना - इस प्रकार अन्य भी चार भावना है (i) ज्ञानभावना (ii) दर्शनभावना (iii) चारित्रभावना (iv) वैराग्यभावना / इस भावना से आत्मा को ज्ञानादि से भावित करना होता है / यह दानादि धर्म बात हुई / 'सम्यग्दर्शनादि धर्म - योगात्मक धर्म' साश्रव-निराश्रव धर्म (2) सम्यग्दर्शनादि धर्म :- सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यग् चारित्र / (3) योगात्मक धर्म :- 'अध्यात्म-भावना-ध्यान-समता वृत्तिसंक्षयः / ' 2 2470