________________ 'अनुप्रेक्षा' माने ऐसा चिंतन कि जिससे आत्मा भावित हो / जैसे कि, - 'जगत् के संयोग अनित्य है, तो हमारे भी इष्ट-संयोग सब अनित्य है,' - ऐसा चिंतन करते करते दिल ऐसा भावित हो जाए, कि मन को महसूस होने लगे कि अनित्य संपत्ति-परिवार आदि पर क्या आसक्ति करनी? 12 भावना के विषय ये हैं 1. अनित्यता| 4. एकत्व |7. आश्रव | 10. लोक 2. अशरण | 5. अन्यत्व | 8. संवर | 11. बोधि 3. संसार 6. अशुचित्व 9. निर्जरा | 12. धर्मस्वाख्यात (1) बाह्य-अभ्यन्तर सब संयोग नाशवंत है / (2) जीव को संसार में कोई भी शरणभूत नहीं / (3) संसार असार है, क्योंकि इसमें विचित्र संबंध, स्वार्थ पटुता, अनेक आशाभंग...आदि अनिष्ट है / (4) जीव जन्म-मृत्यु-रोग-कर्मबन्ध-परलोक गमन आदि से अकेला है / (5) स्वजन-परिजनादि सब हमसे अन्य है / (6) शरीर अशुचि से उत्पन्न व पुष्ट एवं अशुचिमय है / (7) हिंसादि के विचार-वाणी-वर्ताव व राग-द्वेषादि ये अपार कर्मबंधक आश्रव है / (8) जिनभक्ति आदि धार्मिक क्रिया-व्रत-नियम आदि ये कर्म-रोधक संवर है / (9) तपधर्म, कष्ट, वैयावच्च, स्वाध्याय, ध्यान आदि से बहुत कर्मनिर्जरा होती है / (10) लोकत्रिलोक की परिस्थिति सोचनी / (11) 'बोधि' यानी SR 24688