________________ प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान का जीव धन (धन्य) सार्थवाहने मुनि को घी का दान दिया व मुनि से सम्यक्त्व-धर्म पाया / ___(i) दान के 3 प्रकार है (i) अभयदान (ii) ज्ञानदान (iii) धर्मोपग्रहदान / 'अभयदान' में मृत्यु मुख में जाते जीवों को जीवितदान दिलाना / 'ज्ञानदान' में सम्यक्शास्त्रो का बोध देना / 'धर्मोपग्रह-दान' में साधु को उनके संयम जीवन के पोषक अन्न, वस्त्र, पात्र, औषधि आदि का दान देना / अरिहंत भगवान तीर्थंकर बनते पहले वर्षीदान देते हैं, सालभर तक रोजाना सुबह दो घटिका पर्यंत 1 क्रोड 8 लाख सुवर्णमुद्रा का इच्छित दान देते है / इससे दानधर्म की प्रथमता सूचित होती है / गृहस्थ धर्म में भी जिनपूजा मुख्य है, इसमें भी अपने द्रव्य का परमपुरुष जिनपरमात्मा जैसे श्रेष्ठपात्र (रत्नपात्र) में दान है / शीलधर्म का महत्त्व - (ii) शीलधर्म में ब्रह्मचर्य, सदाचार, सम्यक्त्व, अणुव्रत महाव्रत और अवान्तर कितने ही व्रत-नियम लिए जाते हैं व पाले जाते हैं / शीलधर्म की इतनी महत्ता है कि 'शील बिना व्रत जाणजो, कुसका सम भाई रे', शील सदाचार के बिना और व्रत-नियम चावल के छिलके समान है / शीलरहित मनुष्य का भरोसा नहीं किया जाता EN 2400