________________ शील का इतना बड़ा प्रभाव है कि जब सीताजी को रामचन्द्रजी ने सतीत्व की प्रतीति कराने हेतु प्रज्वलित आग में प्रवेश करने का कहा तब सीताजी ने 300 हाथ लम्बे अग्नि से प्रज्वलित खंदक के आगे खडे रह कर गंभीर स्वर में अपना यह संकल्प वहां उपस्थित जन-मेदनी को सुनाया :-"यदि मेरे दिल में रामचंद्रजी के अतिरिक्त अन्य किसी भी पुरुष को स्थान नहीं दिया हो, अर्थात् मेरा शील अगर शुद्ध-विशुद्ध हो, तो हे अग्निदेवता ! मुझे अपनी ज्वालाओं में से जाने का मार्ग दे दीजिए; अन्यथा मुझे तुम अपनी ज्वालाओं में भस्मीभूत कर देना" इतना कहते ही सीताजी ने ज्यों ही प्रज्वलित अग्नि में पेर रखा; फिर तत्क्षण अग्नि-शिखाओं से उबलता खंदक निर्मल जल से सुशोभित सरोवर बन गया ! तपधर्म का महत्त्व - जीव-स्वरुप सुवर्ण को शुद्धता का रूप लाने के लिए तप-साधना अग्नि है / तप यह नवकारशी से लेकर बियासन, एकासन, नीवि, आंयबिल, उपवास, छट्ठ, अट्ठम, अट्ठई, पासक्षमण, मासक्षमण यावत् छ मासी उपवास तक किया जा सकता है | महावीर परमात्मा गणधर गौतमस्वामी को कहते है कि, "है गौतम ! जिन्होंने पूर्व जन्मों में निजकृत पापों की आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रायश्चित्त न किये हो, उनको उन पापों का नाश या तो उनके फल-विपाक भुगते बिना 2 241880