________________ 8. शिष्टाचार प्रशंसा :- शिष्ट पुरुषों के आचार ये हैं:- लोकनिंदा का भय, दीन दुःखियों का उद्धार, कृतज्ञता, दूसरे की प्रार्थना को न ठुकराने का दाक्षिण्य, निंदा-त्याग, गुण-प्रशंसा, आपत्ति में धैर्य, सम्पत्ति में नम्रता, अवसरोचित हित-मित-प्रिय वचन, एकवचनीपन यानी वचन बद्धता, विघ्नजय, आयोजित व्यय, सत्कार्य का आग्रह, अकार्य का त्याग, औचित्यादि-ऐसे शिष्ट आचारों की प्रंशसा करते रहना / शिष्टाचारों की प्रंशसा से इनके प्रति पक्षपात रहेगा, व मन में उनके संस्कार उत्पन्न होंगे / यह अत्यावश्यक है कि मार्गानुसारी के 35 गुणों से जीवन महकता व दैदीप्यमान हो, क्योंकि आगे जाकर संसार का त्याग कर साधुजीवन में पहुँचना है / वहाँ भी यदि इन गुणों में से किसी एक गुण का भी भंग किया जाता है तो वह उच्च धर्मस्थान से पतित होने की स्थिति में पहुँच जाता है / जैसे कि नन्दीषण मुनि 'अयोग्य देशकाल चर्या' तथा 'आन्तर शत्रुमद' के वश होकर वेश्या को समझाने के लिए उसके घर ठहरे तो पतित हुए / मार्गानुसारी गुणों द्वारा आत्म-क्षेत्र को जोतने से वह नरम (मृदुमुलायम) बनता है व अपुनर्बंधक अवस्था से रसीला व उपजाऊ बनता है / अपुनर्बंधक अवस्था - इसका भाव है आत्मा की ऐसी गुणयुक्त अवस्था कि अब जिसमें 2378