________________ 6. बुद्धि के आठ गुण :- (i) धर्म श्रवण के लिये तथा (ii) व्यवहार में किसी को दिखाने की झूठी वाणी-वर्ताव पर उत्तेजित न होने के लिए बुद्धि के आठ सोपान पर आरुढ होना चाहिए / ये हैं "शुश्रुषा श्रवणं चैव, ग्रहणं धारणं तथा / ऊहापोहोऽर्थविज्ञानं, तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः / / " (i) प्रथम श्रवण की इच्छा उत्पन्न होना 'शुश्रूषा' है / तत्पश्चात् (ii) इधर-उधर व्यर्थ न झांकते हुए; अथवा चित्त को शून्य न बनाते हुए, या मन को अन्यत्र न लगाते हुए ठीक प्रकार से धर्म सुनना यह 'श्रवण' है / (iii) सुनते हुए समझते जाना यह 'ग्रहण' है / (iv) समझी हुई बातों को मन में बराबर स्थिर रखना यह 'धारणा' है / (v) सुनी हुई बात पर अनुकूल तर्क-दृष्टान्त पर विचार करना यह 'ऊहा' है / (vi) प्रतिपक्ष में यह बात नहीं हैं यह देखना, अथवा प्रस्तुत में बाधक आशंका अभाव है यह निश्चित करना वह 'अपोह' है / (vii) ऊहापोह से पदार्थ का निर्णय करना यह अर्थ विज्ञान' है / (viii) पदार्थ-निर्णय पर सिद्धान्त निर्णय करना या सार-रहस्यतात्पर्य का निर्णय अथवा तत्त्वनिर्णय करना, यह 'तत्त्वज्ञान' है / इस प्रकार बुद्धि के आठ गुणों के साथ धर्म-श्रवण करना / ____7. प्रसिद्ध-देशाचार का पालन :- जिन से धर्म का घात न हो, लोगों के चित्त में संक्लेश न हो, धर्म की निंदा न हो ऐसे प्रसिद्ध देशाचार का पालन करना, उल्लंघन नहीं करना / 2 2360