________________ की लज्जा, दाक्षिण्य हो तो गलत रास्ते पर जाने से रुका जाता है / सत्कार्य की कभी इच्छा न होने पर भी शर्म से (लज्जावश) सत्कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त होती हैं / दाक्षिण्य से दूसरों की प्रार्थना का भंग नहीं किया जाता है / 3. सौम्यता :- स्वभाव, हृदय, वाणी, और मुद्रा (मुखाकृति) सौम्य रखनी / इन चारों को उग्र न बनाकर कोमल शीतल रखना चाहिए / इससे सबसे सद्भाव और सहानुभूति प्राप्त होती है / 4. लोकप्रियता :- उपर्युक्त गुणों और सदाचारो से लोगों का प्रेम सम्पादन करना / 5. दीर्घदृष्टि :- किसी भी कार्य में कदम उठाने से पहले अन्तिम __ परिणाम तक दृष्टि डालनी, जिससे बाद में पछताना न पडे / 6. बलाबल विचारणा :- कार्य चाहे परिणाम में लाभप्रद भी हो, तो भी कार्य और परिणाम के लिए अपना शक्ति सामर्थ्य कितना है यह सोच लेना चाहिए / शक्ति न होने पर दौड़ने में पीछे मूडना पडता है / अतः शक्ति न हो तो वह नहीं करना / 7. विशेषज्ञता :- (विशेष विवेक) (i) हमेशा सार-असार, कार्यअकार्य, वाच्य-अवाच्य, लाभ-हानी आदि का विवेक करना / (ii) इसी प्रकार विशेष नया आत्महितकर ज्ञान प्राप्त करते रहना / यह भी विशेषज्ञता है / 22 23480