________________ नत 6. अजीर्ण में भोजन त्याग :- घर में भोजन किया जाता हे किन्तु पूर्व का जब तक यानी पहले किया हुआ भोजन पच न जाए, तब तक दूसरा भोजन न किया जाए / यह 'अजीर्ण भोजन त्याग' / 7. समय पर सात्म्यतः भोजन :- भुख लगने पर भी भोजन प्रायः नियमित समय पर और अपनी प्रकृति के अनुकूल करना चाहिए | नियमितता की आवश्यकता इसलिए है कि उदर में पाचक रस नियमित रुप में प्रगट होते हैं / जल्दी या देर करने में इन में परिवर्तन होता है / यदि प्रकृति वायु की हो और सेम (वाल), चने, मटर आदि खाया जाए तो वायु के बढ़ने से स्वास्थ्य खराब होगा / 8. माता - पिता की पूजा :- भोजन स्वयं का बाद में किया जाए, किन्तु माता - पिता को पहले कराया जाए / माता - पिता को भोजन, वस्त्र, शय्या आदि अपनी शक्तिअनुसार किन्तु अपनी अपेक्षा सवाया देकर भक्ति करनी चाहिए / 9. पोष्य पोषण :- जिनका हम पर उत्तरदायित्व है ऐसे पोष्यवर्ग का, कुटुम्ब आदि का पोषण भी हमारा कर्तव्य है / 10. अतिथि, साधु, दीन की सरबराः- उनकी यथायोग्य प्रतिपत्ति। 'अतिथि' का अर्थ है कि जिनको धर्म करने के लिए कोइ निश्चित तिथिविशेष नहीं, परन्तु हमेशा के लिए धर्म है, ऐसे मुनि / तथा 'साधु' अर्थात् 'सज्जन' / इनके अतिरिक्त यदि कोइ, दीन - हीन - दुःखी व्यक्ति घर पर आ जाए, तो उसकी भी यथा - योग्य सेवा 22 2310