________________ 11. ज्ञानवृद्ध-चारित्रपात्र की सेवा 11. कर्तव्य - 1. गृहस्थ जीवन में आजीविका के उपार्जन बिना निर्वाह नहीं / उसका उपार्जन न्याय से करना इसे 'न्यायसंपन्न विभव' कहते हैं / अन्य विषयों में भी 'न्याय सम्पन्नता' नाम का पहला कर्तव्य है / 2. खर्च भी उपार्जित धन के अनुसार करना चाहिए; किन्तु चाहिए उससे अधिक नहीं, या धर्म को भूलकर नहीं / यह 'उचित व्यय' (आयोजित व्यय) नामक दुसरा कर्तव्य है / 3. पैसे से उद्भट (शराबी का, प्रमत्त का) वेश धारण नहीं करना, परन्तु उचित, शोभाप्रद वेश रखना / (साथ में वेश के अलावा दुसरी वस्तु में भी उचित का उपयोग रखना) यह उचित वेश, अनुद्भट वेश, नामक तीसरा कर्तव्य है / ___4. उचित घर :- रहने के लिए घर ऐसा न हो कि चोर, बदमाशों को अनुकूल बैठे, या घर में पापों का प्रवेश हो जाए / अर्थात् घर अधिक द्वारोंवाला न हो / बहुत गहराईवाली गल्ली में या जाहिर खुला न हो / एवं पडोश अच्छा हो / 5. उचित विवाह :- घर चलाने के लिए विवाह करना होगा / वह भिन्न गोत्रवाले व समान कुल तथा शील-आचार-संपन्न परिवार में ही किया जाए / यह 'उचित विवाह' है / 2306