________________ के प्रसंग का, (4) अंतकाल में जीवित रहे वहां तक का पच्चक्खाण / 1. दिन के पच्चक्खाण में सूर्योदय से लेकर दो घड़ी तक चारों प्रकार के आहार का त्याग रखने के लिए 'नवकारशी' पच्चक्खाण किया जाता है / सूर्योदय से 1 प्रहर (1/4 दिनमान) तक का आहारत्याग यह 'पोरिसी' पच्चक्खाण है / 'सार्ध पोरिसी' पच्चक्खाण में 1 / / प्रहर, पुरिमड्ढ' में 2 प्रहर (आधा दिन), 'अवड्ढ' में तीन प्रहर तक चारो प्रकार के आहार का त्याग रहता है / इस पच्चक्खाण के पूरा होने पर मुट्ठी वालकर नवकार गिनकर ही खाना-पीना शुरू किया जाता है / क्योंकि इस पच्चक्खाण के साथ 'मुट्ठि सहियं' पच्चक्खाण होता है / इसका अर्थ है कि जब तक मुट्ठी वाल कर नवकार न गिनूं तब तक चारों आहार का त्याग है / 'दिन में बारंबार अकेले यह मुट्ठीसहियं पच्चक्खाण करने से भी अनशन का बहुत लाभ मिलता है / एक महिने में कुल 'मुट्ठीसहियं' पच्चक्खाणों के घंटे गिनने पर 25 से ऊपर उपवास का लाभ होता है / ' इसके अतिरिक्त शुक्ल और कृष्ण पक्ष की दूज, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावस्या - इन बारह तिथियों में विशेषकर, बेआसन, एकासन नीवी, आयंबिल, उपवास आदि तपस्यातप किये जाते हैं / बेआसन में सारे दिन में दो बैठक से अधिक बार भोजन नहीं 21180