________________ यदि नियम न हो, विरति न हो, तो दिल में पाप की अपेक्षा खड़ी रहने के कारण आत्मा पर कर्म चिपकते रहते हैं / नियम करने से ये रुक जाते हैं; और मन भी बन्धन में आ जाने के कारण भविष्य में जहाँ तक नियमो की समय मर्यादा पहुँचती है वहाँ तक पापसेवन का मन नहीं होता है / मन नियमवश पाप- सेवन नही करना चाहता / इस प्रकार पाप त्याग निश्चित हो जाने से शुभ भाव और शुभ प्रवृत्ति के द्वार खुल जाते हैं, उन्हें अच्छा अवकाश प्राप्त होता है / 'विरति' का महत्त्व जैन दर्शन में ही मिलता है / हम यहाँ नियमों का वर्णन तीन प्रकार से करेंगे 1. पच्चक्खाण, 2. चौदह नियम, व 3. चौमासे व जीवन के नियम / 1. पच्चक्खाण :- पच्चक्खाण से यहां तात्पर्य है दिन और रात के अन्न-पानी के त्याग के भिन्न भिन्न नियम / जीव को अनादि काल से आहार संज्ञा यानी खानपान की जटिल आदत है / यह ऐसी धिरी है, वचक है कि ध्यान न रखने पर उपवास का पच्चक्खाण होने पर भी आहार का विचार आ जाता है / आहार संज्ञा के कारण (i) कहीं भी जन्म लिया कि तुरन्त ही सबसे पहली बात खाने की ! (ii) आहार संज्ञा के पाश में अनेक व्यक्ति धर्म-ध्यान तथा त्यागतप से विचलित हो जाते हैं / अतः आहार संज्ञा में कमी करते 2 2098