________________ के प्रसंग पर रात के समय धार्मिक गीत-गान आदि से जागरण / 8. श्रुत पूजा :- शास्त्र-पुस्तको की पूजा, उत्सव, शास्त्र लिखवाना, छपवाना, ज्ञानभंडार का संरक्षण आदि / 9. उद्यापन :- नवपद, वीसस्थानक आदि तप की पूर्णाहुति के निमित्त, अथवा अन्य प्रसंग पाकर ज्ञान-दर्शन-चारित्र के उपकरणों का प्रदर्शन-समर्पण / 10. तीर्थ प्रभावना :- विशिष्ट पूजा-वरघोडे-पदप्रदान आदि के उत्सव, गुरु का भव्य प्रवेश-महोत्सव आदि बडे ठाठ व अनुकंपा करने द्वारा लागों में जिनशासन की प्रभावना करनी / 11. शुद्धि :- सामान्यत :- जब दोष लगे तभी अथवा प्रति पक्ष, प्रति चातुर्मास, अथवा आखिर में वर्ष में एक बार गुरु के समीप पाप की शुद्धि करनी / अर्थात् गुरु के समक्ष बालभाव से दोष-भूल प्रकट कर यथाशक्ति प्रायश्चित्त लेना, और उसे वहन करना / 18. जीवन-कर्तव्य तथा 11 प्रतिमा (विशिष्ट नियम) गृहस्थ को समस्त जीवन में एक बार तो ये 18 कर्तव्य पालने योग्य है, ___ 1. चैत्य अर्थात् जिन-मन्दिर बनवाना / इसके लिए द्रव्य-शुद्धि, 0 2060