________________ प्रभावना करनी / वे यदि दुःखी हों तो उनका धनादि से उद्धार करना, धर्म-कर्म की सुविधा देनी, उन्हें धर्म में स्थिर करना / भूल करनेवालें को उदार हृदय से क्षमा देनी, भूल से बचाना, सन्मार्ग में प्रोत्साहित करना, हार्दिक वात्सल्य रखना.... | 3. यात्रा-त्रिक :- (i) अष्टान्हिका यात्रा (अट्ठई महोत्सव), गीतवाद्य-अंग रचना से एवं उचित दान आदि से जिनेन्द्र-भक्ति / (ii) रथयात्राः- भगवान को रथ में बिराजमान करके ठाठ समारोह पूर्वक वरघोड़ा / (iii) तीर्थयात्राः-श@जयादि तीर्थ की यात्रा / 4. स्नात्र-महोत्सव :- प्रतिदिन अथवा यह शक्य न हो तो पर्व के दिन, मास के प्रारम्भ में, अथवा अनन्तोगत्वा बड़े समारोह के साथ वर्ष में एक बार प्रभु का स्नात्र महोत्सव संपन्न करना / 5. देवद्रव्य वृद्धि :- बोलियों द्वारा देवद्रव्य में वृद्धि करनी अथवा प्रतिमाजी के लिए आभूषण, पूजा-साधन, नगद दान आदि द्वारा देवद्रव्य की वृद्धि करनी / यहाँ एक खयाल अवश्य रखना कि बोली बोलने के बाद तुरन्त पेमेन्ट कर देना, क्योंकि बोली ली तब से उतनी रकम हमारे घर में देवद्रव्य की हो गई / वह हमारे व्यापारादि में काम आएगी, इससे हमें देवद्रव्य भक्षण का पाप लगेगा / 6. महापूजा :- प्रभु की विशिष्ट अंगरचना, आसपास शोभा शृंगार, मंदिर सजाना आदि करना / वर्ष में एकबार तो जरूर करना / 7. रात्रि जागरण :- उत्सव के अवसर पर अथवा गुरुनिर्वाण आदि 30 2050