________________ त्याग करना / स्नान करने तथा तेल आदि की मालिश इत्यादि में भी प्रमाण नियम करना / यथाशक्ति उपधान तप, वर्धमान आयंबिल तप, संसार तारण तप, उपवास आदि तपश्चर्या विशेषतः करनी / रात्रि में चउविहार, दुखियों की सहायता इत्यादि चातुर्मासिक कर्तव्य करणीय हैं / वार्षिक कर्त्तव्य-११ 1. संघ पूजा, 2. साधर्मिक भक्ति, 3. यात्रा त्रिक, 4. स्नात्र, 5. देवद्रव्य वृद्धि, 6. महापूजा, 7. रात्रि जागरण, 8. श्रुतपूजा, 9. उद्यापन, 10. प्रभावना, 11. शुद्धि / श्रावक को इन 11 कर्त्तव्यों का पालन प्रतिवर्ष करना चाहिए / इनमें रथयात्रादि कुछ कार्य अगर एक व्यक्ति से न किया जा सकता हो, तो उन्हें सामूहिक चन्दं मे भाग देकर करने चाहिए / इनका विवरण इस प्रकार है 1. संघ-पूजा :- संपत्ति के अनुसार साधु-साध्वी की वस्त्र-पात्रपुस्तक आदि से भक्ति, तथा श्रावक-श्राविका की मिलनी आदि से भक्ति (सन्मान) करना / अलबत्ता साधु- साध्वीजी महाराजों को चौमासे में वस्त्र-पात्रादि वहोरना खपता नहीं है किन्तु शेषकाल में खपता है / 2. साधर्मिक-भक्ति :- श्रावक-श्राविका को आमन्त्रण पूर्वक घर लाकर स्वागत, विनय आदि करके मान पूर्वक भोजन कराना, मिलनी 2 2048