________________ बृहत् देववंदन, स्नात्र महोत्सव, नये-नये ज्ञान का पठन व वांचन / धोने-कूटने-दलने-पीसने आदि में संकोच, प्रासुक जल का पीना, खानेपीने में सचित्त वस्तु का सर्वथा त्याग आदि / इसके अतिरिक्त आंगन, दीवार, स्तम्भ, खाट, लोहे की सीखें, घी-तेल-पानी आदि के भाजन तथा उनके स्थान में एवं अनाज,कोयला, ऊपला आदि सब वस्तुओं में हरी, काइ अथवा चींटी, ढोला, धून आदि जीव उत्पन्न न हो इसलिये स्वच्छता रखनी एवं जीवोत्पत्ति निवारण हेतु चुना व राख आदि का उपयोग करते रहना / दिन में दो या तीन बार पानी छानलेना / (i) चूल्हा, (ii) घडौंची (iii) गड्ढे, तथा (iv) चक्की पर, तथा (v) मथने, (vi) सोने, (vi) नहाने, और (viii) भोजन करने के स्थानों पर, (ix) मन्दिर और (x) पौषधशाला में ऐसे 10 स्थानो में चंद्रोवा बांधना / ब्रह्मचर्य पालना / बाहरगांव जाने का त्याग/दातुन जूतों आदि का त्याग / खोदने के काम, रंगने के काम, गाड़ी चलाने आदि बड़े आरम्भ-समारम्भ के पाप-कृत्य बन्द करने / पापड़, वड़ियां आदि तथा सूखे साग-भाजी, जिनमें काइ एवं सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति का संभव है, उनका त्याग तथा नागरवेल के पान, छुहारे आदि का त्याग, फाल्गुन 15 से खारेक खजूर आदि त्याग होता है / 15 कर्मादान तथा अधिक आरम्भ-समारम्भवाले कठोर कर्मों का 32 20388