________________ तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण, ये विशेष रुपेण करणीय हैं / ? चतुर्मासिक-वार्षिक-जीवन-कर्तव्य श्राद्धविधि शास्त्र में श्रावक द्वारा दैनिक एवं पर्वसंबन्धी कर्तव्यो के अलावा चतुर्मास, वर्ष और जीवन में आचरणीय कर्त्तव्यों की भी नोंध हैं चातुर्मासिक कर्त्तव्यः- श्रावक को अषाढ़ के चौमासे में विशेष प्रकार से धर्म की आराधना करनी चाहिये / इसके 4 कारण हैं(i) वर्षाऋतु के कारण जीवों तथा (ii) विकारों की उत्पत्ति विशेष रुप से होती है / अतः जीवदया और विकार-निग्रह का खास ध्यान रखना पड़ता है / (iii) व्यापार-धंधे मंद होने से धर्म का अच्छा अवकाश रहता है / (iv) मुनि महाराज का स्थिर वास होता है / अतः धर्मकार्य करने की प्रेरणा मिलती है / इस हेतु श्रावक को चतुर्मास में ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार की शुद्धि व वृद्धि के लिये अनेक प्रकार के नियम लेने होते हैं और आचार अनुष्ठान मार्ग का आदर करना होता है / ग्रहण किये गए 12 व्रत आदि में वैशिष्ट्य करना चाहिए / व्रत ग्रहण न किया हों तो नये व्रत नियमों को लेने चाहिए / जैसे की दो अथवा तीन समय जिन पूजा, पूजा में विशेष द्रव्य, 0 20282