________________ पोष दशमी यानी वदी 10 (गुजराती मार्गशीर्ष वदि-१०) यह पार्श्वनाथ प्रभु का जन्म कल्याणक दिन है / भवी लोक अट्ठम से आराधना करते हैं / न बन सके तो तीन आयंबिल से / अथवा अगले दिन सक्कर के पानी का एकासन, दशमी के दिन खीर का एकासन, और ग्यारस के दिवस चालू एकासन / फिर प्रतिमास वद१० के दिन एकासन या आयंबिल तप करते हैं / पार्श्वनाथ प्रभु की स्नात्र-महोत्सव से भक्ति, त्रिकाल देववन्दन, 'ॐ ह्रीं पार्श्वनाथ अर्हते नमः' की 20 माला गिननी / ___ माघ वदि 13 :- (पोष वदि 13 याने मेरुतेरस) यह इस युग के प्रथम धर्मप्रवर्तक श्री ऋषभदेव प्रभु का मोक्ष गमन का दिवस है / इस दिन उपवास करके पांच मेरु की रचनाकर तथा घी के दीपक जलाकर 'ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेव पारंगताय नमः' का 2000 (याने 20 माला) जाप किया जाता है / चैत्र वदी 8 :- (गुज० फाल्गुन वदि 8) ऋषभदेव प्रभु का जन्म और दीक्षा कल्याणक का दिन है / इसके अगले 1 या 2 दिन से बेला अथवा तेला करके वर्षीतप शुरु किया जाता है / इस में एकान्तर से 'उपवास' व 'बियासना' लगातार चलते है / बीच में यदि 14 (चौदस) आ जाए तो उपवास ही करना होता हैं | चौमासी चौदस को बेला / इस प्रकार लगातार करते हुए दुसरे वर्ष की वैशाख सुदी 2 तक यह तप जारी रहता है / 2 1980