________________ चौमासी-एकादशी और चौमासी-चतुर्दशी को उपवास, पौषध, चौमासी देववन्दन आदि किए जाते हैं / आराधक आत्माओं को (पक्खी पाक्षिक) चतुर्दशी के दिन उपवास, चौमासी-चतुर्दशी के दिन छट्ठ (बेला), तथा संवत्सरी के दिन अट्ठम (तेला) अवश्य करना चाहिए / चौमासी चतुर्दशी के छट्ठ (बेले) की शक्ति न हो तो एकादशी और चतुर्दशी के दिन पृथक्-पृथक् उपवास करके भी चौमासीपर्व का तप पूरा हो सकता है / कार्तिक सुदि प्रतिपदा को प्रातः नवीन वर्ष का प्रारंभ होने से पूरा वर्ष धर्म के रंग में धर्म-साधना से तथा सुंदर चित्त-समाधि से व्यतीत हो इस उद्देश से नवस्मरण व गौतम-रास का श्रवण करना। फिर चैत्य परिपाटी व स्नात्र-उत्सव के साथ प्रभु-भक्ति विशेष रूप से करनी / ___कार्तिक सुदि 5 :- 'सौभाग्य पंचमी है / इस दिन ज्ञान की आराधना के लिए उपवास-पौषध, ज्ञान-पंचमी के देववन्दन, ज्ञान के 51 लोगस्स का कायोत्सर्ग, 'नमो नाणस्स' की 20 माला से 2000 जप आदि किया जाता है / मार्गशीर्ष सुदि-११ :- यह मौन एकादशी है / अतः सारा दिन और रात मौन रखकर उपवास के साथ पौषध करना / मौन एकादशी का देववंदन तथा उस दिन हुए 90 भगवान के 150 कल्याणक की 150 मालाओं का जाप करना / 80 1970