________________ स्वच्छ थाली में रखना चाहिए / 6. चन्दन केसर लसटना-घुटना रगड़ना हो तो मुंह बाँधकर, हाथ व चकला आदि धोकर करें / ____7. चैत्यवन्दन, स्तुति आदि इस प्रकार न बोला जाए, जिससे दूसरों के भक्तियोग में व्याघात हो / 8. इसी प्रकार उस समय साथिया या अन्य क्रिया न की जायें। 9. बाहर आते समय प्रभु की ओर अपनी पीठ न हो इत्यादि सावधानी रखनी / (23) अष्ट प्रकारी पूजा में भावना (1) जलपूजा :- यह 'स्नान-पूजा' नहीं किन्तु 'अभिषेक पूजा' है / अरिहन्त भगवान को अपने हृदय के सिंहासन पर गादीनशीन करना है / वहाँ यह भावना करनी है कि- 'हे प्रभु / आज तक मैंने मोहराजा की आज्ञा बहुत मानी; इससे संसार में अनंत भवभ्रमण किया, अब मैं मोहराजा को उठाकर पदभ्रष्ट करके हे वीतराग अरिहन्त प्रभु ! अब मैं आप को मेरे हृदय के सिंहासन पर राज्याभिषेक करता हूँ / आज से आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य है। इस का यह मैं अभिषेक करता हूँ / ' 1890