________________ स्थान से दूसरे स्थान ले जाना हो, तो बहुमान पूर्वक दोनों हाथों से थाम कर ले जाना, आदि / चक्रवर्ती से भी ज्यादा जिनबिंब का विनय करना / 2. यह ध्यान रखना चाहिये कि द्रव्य अपने ही घर के ले जायें। क्योंकि जिनचरण रूपी समुद्र में समर्पित अल्प भी अपने द्रव्यरूपी जल-बिन्दु अक्षय लक्ष्मी बन जाते हैं / 3. पुष्पों की कलियाँ न तोड़ी जायें, इनका हार बनाते हुए सुई से नहीं बींधा जाय / पुष्पों को धोना नही / 4. प्रभु के अंग पर वालाकुंची का उपयोग करते वक्त जरा मात्र भी आवाज न हो इस रीति से मात्र चिकनाई दूर करने हेतु बहुत मृदु हाथ से उपयोग करना चाहिए। जिस प्रकार दांत में फँसे हुए किसी टुकडे या अंशकण को ध्यान पूर्वक निकालते हैं उसी प्रकार कोनो में भरा हुआ केशर निकालना चाहिए / वैसे तो पानी से लच बच बडे कपड़े से ही प्रभु के अंग पर छबछबियां करके पूर्व दिन का चन्दन-केसर साफ करना चाहिए, किन्तु कूची से इस प्रकार घसाघस नहीं करनी चाहिए जैसे कि पाषाण की जमीन या धातु के बरतन मांजे जाते है / 5. प्रभु के अंगो पर चढाये गए फूल, आभूषण तथा अंगलूहना आदि नीचे भूमि पर नहीं गिरने चाहिए, यदि गिर जायें तो आभूषणअंगलूहने को पुनः बिना धोये उपयोग न किया जाय / वास्ते उन्हें 18860