________________ मन्दिर की विधि : मंदिर में दर्शन व पूजा के लिये जाते हुए तीन-तीन प्रकार से 10 विषयों अर्थात् दश त्रिक का पालन करना जरुरी है / 10 त्रिक : वीतराग प्रभु के गुणों की तथा दर्शन आदि भक्ति की अत्यन्त सुंदर भावना के साथ घर से निकल कर मार्ग में कोई जीव-जन्तु न मरे यह ध्यान रखते हुए मंदिर जाना चाहिए / मन्दिर के बाहर से प्रभुका दर्शन होते ही मस्तक पर अंजलि लगाकर 'नमो जिणाणं' बोलना / तत्पश्चात् मंदिर में प्रवेश करते हुए निसीहि से लेकर, प्रणिधान तक दस त्रिक (3-3 वस्तु) का पालन करना होता है / प्रवेश करते हुए (i) निसीहि, फिर (ii) प्रदक्षिणा, फिर (iii) प्रभु के सन्मुख खड़े रहकर प्रणाम-स्तुति, फिर (iv) अंग-अग्रपूजा, फिर (v) प्रभु के सामने खड़े रहकर भावना (प्रभु की अवस्था का चिंतन), उस प्रकार पांच त्रिक का पालन करना / तत् पश्चात् चैत्यवंदन करने के पाँच त्रिक / इनमें (vi) भगवान के अतिरिक्त अन्य दिशा देखने का त्याग, (vii) बैठने की भूमि पर जीव-जन्तु न मरे वास्ते उत्तरासंग (खेस) के छोर से प्रमार्जन, (viii) चित्त के 3 आलंबन (सूत्र-अर्थ-प्रतिमा) निश्चित करना, (ix) सम्यक् आसन के लिए हस्त आदि की चोक्कस मुद्रा बनानी, (x) प्रणिधान 0 1800