________________ अर्थात् एकाग्रता पूर्वक चैत्यवंदन आदि सब क्रिया करनी / मंदिर के 10 त्रिक का विवरण : निसीहि-आदि 10 विषयो में हरेक के तीन-तीन भेद हैं / (1) निसीहि (= निषेध) 3:- पहली निसीहि मंदिर में प्रवेश करते समय सांसारिक प्रवृत्तियों के त्याग के लिए बोलनी / दूसरी निसीहि मूल गभारे में प्रवेश के समय बोलनी / मंदिर संबंधी सफाई, सार-संभाल आदि की भाल-भलामण अब न करने के लिए / तथा तीसरी निसीहि चैत्यवंदन (भावपूजा) से पूर्व द्रव्यपूजा का ध्यान छोड़ देने के लिए कही जाती है; क्योंकि अब चैत्यवंदन यानी भावपूजा में मन स्थिर रखना है / (2) प्रदक्षिणा 3:- अच्छी वस्तु को हमेंशा अपनी दायी ओर रखी जाती है / अतः वीतराग प्रभुजी के दायी ओर से बायी ओर (चारों ओर) तीन बार फेरी लेना, जिससे हम वीतराग बने, भवभ्रमण दूर हों; क्योंकि वीतराग के चारों ओर घुमते हुए मस्तिष्क में वीतरागता का ध्यान गुंजायमान होता है / जैसे कि भौंरी इयड (ढोले) के आसपास चक्कर लगाकर इयड में भी भौंरी-भाव उत्पन्न कर देती है / वीतराग के आसपास प्रभु के स्तोत्र या नाम के साथ घुमने से मस्तिष्क में वीतरागता का ध्यान गूंजता व संस्कार पड़ता है / 2181